Ayurveda

Ayurveda

Tuesday 29 September 2015

हाइपो- थायरायडिज्म -- Hypothyroidism

हाइपो- थायरायडिज्म -- Hypothyroidism :

मोटापे, बाल झडने और कई समस्याओं का कर्ण हो सकता है - हाइपो- थायरायडिज्म

प्रारम्भिक लक्षण :

- मांसपेशियों की धीमी गतिविधि (पेशी हाइपोटोनिया)

- थकान

- सर्दी को सहन करने की क्षमता में कमी, सर्दी के लिए बहुत अधिक संवेदनशीलता

- डिप्रेशन या अवसाद

- मांसपेशियों में अकड़न और जोड़ों में दर्द

- कार्पल टनल सिंड्रोम (Carpal Tunnel Syndrome)

- गलगंड (Goiter)

- अंगुलियों के नाखुन पतले और भंगुर

- पतले, भंगुर बाल

- पीलापन

- पसीना कम आना

- शुष्क, खुजली वाली त्वचा

- वजन का बढ़ जाना और पानी का अधिग्रहण

- ब्रेडीकार्डिया (Bradycardia) (ह्रदय दर कम होना-प्रति मिनट साठ धड़कन से कम)

- कब्ज

- महिलाओं में अधिक माहवारी आना ।

- बच्चे पैदा न होना ।

- यानि आप को भूख लगती नहीं , कुछ खाना खाते नहीं , फिर भी वज़न बढ़ता जा रहा है तो समझ लीजिये
आपको यह प्रोब्लम हो सकती है ।

- सेक्स की बिलकुल भी इच्छा न होना क्या hypotyroidism के कारण हो सकता है

बाद में दिखाई देने वाले लक्षण :

- धीमी आवाज और एक कर्कश, टूटती हुई आवाज-आवाज में गहराई भी देखी जा सकती है।

- शुष्क फूली हुई त्वचा, विशेष रूप से चेहरे पर.

- भौहों के बाहरी तीसरे हिस्से का पतला होना, (हेर्टोघ (Hertoghe) का चिन्ह)

- असामान्य मासिक चक्र

- शरीर के आधारभूत तापमान में कमी

कम सामान्य लक्षण :

- याददाश्त कमजोर होना

- ज्ञानात्माक गतिविधि (सोचने-समझने की क्षमता) का कमजोर होना (दिमाग में धुंधलापन) और असावधानी

- ECG (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम) में परिवर्तनों के साथ ह्रदय दर का धीमा होना, जिसमें कम वोल्टेज के संकेत शामिल हैं। कार्डियक आउटपुट का कम होना और संकुचन में कमी.

- प्रतिक्रियाशील (या खाने के बाद) हाइपो ग्लाईसिमिया

- रिफ्लेक्स (प्रतिवर्ती क्रिया) का धीमा और सुस्त होना.

- बालों का झड़ना.

- अनुपयुक्त हीमोग्लोबिन संश्लेषण के कारण एनीमिया (रक्ताल्पता) (EPO के स्तर में कमी), आंतों में लौह तत्व या फोलेट का अनुपयुक्त अवशोषण या B 12 की कमी, पर्निशियस एनीमिया (प्राणाशी रक्ताल्पता) के कारण.

- निगलने में कठिनाई

- सांस का छोटा होना और एक उथला और धीमा श्वसन प्रतिरूप.

- सोने की जरुरत का बढ़ना

- चिड़चिड़ापन और मूड अस्थिर रहना

- बीटा-कैरोटिन के विटामिन A में ठीक प्रकार से रूपांतरित न होने के कारण त्वचा का पीला पड़ना.

- वृक्क के असामान्य कार्य और GFR में कमी

- सीरम कोलेस्ट्रॉल के स्तर का बढ़ना

- तीव्र मानसिकता (मिक्सेडेमा मेडनेस (myxedema madness)) हाइपोथायरायडिज्म का एक दुर्लभ रूप है।

- वृषण से कम मात्रा में टेस्टोस्टेरोन के उत्पादन के कारण कामेच्छा में कमी.

- स्वाद और गंध की संवेदना में कमी (एनोस्मिया)

- फूला हुआ चेहरा, हाथ और पैर (देर से प्रकट होने वाले, कम सामान्य लक्षण)

गाइनेकोमेस्टिया
नैदानिक परीक्षण :
प्राथमिक हाइपोथायरायडिज्म के निदान के लिए, कई डॉक्टर पीयूष ग्रंथि के द्वारा उत्पन्न साधारण रूप से थायरॉयड उद्दीपक हॉर्मोन (TSH) का माप करते हैं।
TSH के उच्च स्तर इंगित करते हैं कि थायरॉयड ग्रंथि थायरॉयड हॉर्मोन का पर्याप्त उत्पादन नहीं कर रही है (मुख्य रूप से थायरोक्सिन (T4) और ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3)) की कम मात्रा.
हालांकि, TSH का मापन द्वितीयक और तृतीयक हाइपोथायरायडिज्म का पता लगाने में असफल रहता है.
इस प्रकार से यदि TSH सामान्य है और फिर भी हाइपोथायरायडिज्म का संदेह है तो निम्न परीक्षणों की सलाह दी जाती है :
मुक्त ट्राईआयोडोथायरोनिन (fT3)
मुक्त लेवोथायरोक्सिन (fT4)
कुल T3
कुल T4
इसके अतिरिक्त, निम्नलिखित मापन की आवश्यकता भी हो सकती है:
24 घंटे यूरीन मुक्त T3 एंटीथायरॉयड प्रतिरक्षी-स्व प्रतिरोधी रोगों के प्रमाण के लिए जो संभवतया थायरॉयड ग्रंथि को क्षति पहुंचा रहें हैं।
सीरम कोलेस्ट्रॉल - जिसकी मात्रा हाइपोथायरायडिज्म में बढ़ सकती है।
प्रोलेक्टिन -पीयूष के कार्य के लिए व्यापक रूप से उपलब्ध परीक्षण के रूप में.
एनीमिया के लिए परीक्षण, फेरीटिन सहित
शरीर का आधारभूत तापमान
एक बार निदान हो गया और दवा शुरू कर दी गई तो अक्सर जीवन भर खानी पड़ सकती है । क्योंकि अक्सर यह रोग थायरायड ग्रंथि के स्थायी तौर पर नष्ट होने की वज़ह से होता है । यह autoimmunity की वज़ह से होता है ।

उपचार :

इस रोग का एलोपेथी में कोई उपचार नहीं है. लेकिन हॉर्मोन की कमी को पूरा करने के लिए हॉर्मोन को दवा के रूप में दिया जाता है । यानि इलाज़ बस रिप्लेसमेंट के रूप में होता है । फिर भी दवा लेते रहने से सामान्य जिंदगी गुजारी जा सकती है ।

दवा :

-थाय्रोक्सिन की गोली जो २५ , ५० , १०० माइक्रोग्राम में आती है , रोज सुबह नाश्ते से पहले खाली पेट लेनी होती है । इसकी सही डोज़ तो डॉक्टर ही निर्धारित करते हैं , लेकिन आम तौर पर एक व्यस्क के लिए ७५ से १२५ माइक्रोग्राम काफी रहती है ।

फोलोअप :

आरम्भ में हर महीने डॉक्टर से मिलना पड़ेगा । लेकिन एक बार डोज़ निर्धारित होने पर ६ महीने या एक साल में एक बार डॉक्टर से मिलना काफी है ।
फोलोअप में सिर्फ टी एस एच का टैस्ट कराना काफी है ।

गर्भवती महिला :

इन महिलाओं को विशेष ध्यान रखना चाहिए । गर्भ के दौरान डोज़ बढ़ानी पड़ती है क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे को भी इसकी ज़रुरत होती है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो बच्चे को हाइपोथायरायडिज्म हो सकता है।
बच्चे :
बच्चों में इस हॉर्मोन की कमी बहुत घातक सिद्ध हो सकती है । इससे विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिससे बच्चा अल्पविकसित रह सकता है -शारीरिक और मानसिक तौर पर । इन्हें क्रमश : ड्वारफिज्म और क्रेटीनिजम कहते हैं ।

बच्चों में दवा की डोज़ अक्सर ज्यादा रहती है ।
यह रोग महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है । यदि मां को हो तो संतान में होने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है । लेकिन याद रखिये --समय पर निदान होने से कई तरह की मुश्किलों से बचा जा सकता है ।

No comments:

Post a Comment